उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
पौ फटी। सुबह के समय जमीदार के घर से लोग बाहर निकले। एक आश्चर्यमय दृश्य! पेड़ के नीचे एक आदमी मर रहा था। देखने से सद्कुल का जान पड़ता था। शरीर पर शाल, पांव में चमकता हुआ जूता, हाथ में अंगूठी पड़ी हुई थी। एक-एक करके बहुत-से लोग जमा हो गये। क्रम से भुवन बाबू के कान तक यह बात पहुंची, वे डाक्टर को साथ लेकर स्वयं आये। देवदास ने सबकी ओर देखा; किन्तु उनका कंठ रूद्ध हो गया था- एक बात भी नहीं कह सके केवल आंखों से जल बहता रहा। गाड़ीवान जो कुछ जानता था, कह सुनाया, परन्तु उससे कुछ विशेष बातें नहीं मालूम हुई। डाक्टर ने कहा-'ऊर्ध्व श्वास चल रहा है, अब शीघ्र ही मृत्यु होगी।'
सबने कहा-'आह!'
घर में ऊपर बैठी हई पार्वती ने यह दयनीय कहानी सुनकर कहा-'आह!'
किसी एक आदमी ने तरस खाकर दो बूंद जल और तुलसी की पत्ती मुंह में छोड़ दी। देवदास ने एक बार उसकी ओर करूण-दृष्टि से देखा, फिर आंखें मूंद लीं। कुछ क्षण सांस चलती रही, फिर सर्वदा के लिए सब शान्त हो गया।
अब कौन दाह-कर्म करेगा, कौन छुएगा, कौन जाति है आदि विविध प्रश्नों को लेकर तर्क-वितर्क होने लगा। भुवन बाबू ने पास के पुलिस स्टेशन में इसकी खबर दी।
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