उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
367 पाठक हैं |
कालजयी प्रेम कथा
28
इंसपेक्टर आकर जांच-पड़ताल करने लगे। प्लीहा और फेफड़े के बढ़ने के कारण मृत्यु हुई है, नाक और मुख में खून के दाग लगे हैं। जेब से दो पत्र निकले। एक तालसोनापुर के द्विजदास मुखोपाध्याय ने बम्बई के देवदास को लिखा था कि रुपये का इस समय प्रबन्ध नहीं हो सकता। और एक काशी से हरिमती देवी ने उक्त देवदास को लिखा था कि कैसे हो?
बाएं हाथ में अंग्रेजी में नाम का पहला अक्षर गुदा हआ था। इन्सपेक्टर ने निश्चित करके कहा-' यह मनुष्य देवदास है।'
हाथ में नीलम की अंगूठी थी- दाम अन्दाजन डेढ़ सौ था। शरीर पर एक जोड़ा शाल था-दाम अन्दाजन दो सौ था। कोट कमीज, धोती आदि सब लिखे गये। चौधरी और महेन्द्रनाथ दोनों ही वहां पर उपस्थित थे। तालसोनापुर का नाम सुनकर महेन्द्र ने कहा-'छोटी मां के मायके के तो नहीं...!'
चौधरी जी ने तुरन्त बात काटकर कहा-'वह क्या यहां पर शिनाख्त करने आवेगी?'
दारोगा साहब ने हंसकर कहा-'कुछ पागल तो नहीं हो।'
ब्राह्मण का मृत-देह होने पर भी गांव के किसी ने स्पर्श करना स्वीकार नहीं किया अतएव चांडाल आकर बांध ले गये। फिर किसी सूखे हुए पोखरे के किनारे आधे झुलसे हुए शरीर को फेंक दिया, कौवे और गिद्ध उस पर आकर बैठ गये, सियार और कुत्ते परस्पर कलह में प्रवृत हुए। तब भी जिस किसी ने सुना, कहा-'आह!'
दास-दासी भी जहां-तहां भी उसकी चर्चा करने लगे -'कोई बड़े आदमी थे! दो सौ रुपये का शाल, डेढ़ सौ रुपये की अंगूठी, सब दारोगा के पास जमा हैं; दो चिट्ठी थी वे भी उन्हीं लोगों ने रख ली हैं।'
|