उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
यह सब समाचार पार्वती के कान तक भी पहुंचे; किन्तु वह आजकल बड़ी अनमनी रहती है, किसी विषय पर विशेष ध्यान नहीं देती। अस्तु, इस व्यापार के विषय में भी कुछ ठीक नहीं समझ सकी। पर जब सभी के मुख पर इस चर्चा को पाया तो पार्वती ने भी इसके विषय में कुछ विशेष जानने की इच्छा से एक दासी से पूछा-'क्या हुआ है? कौन मरा है?'
दासी ने कहा-'आह, यह कोई नहीं जानता मां! पिछले जन्म का कोई यहां की मिट्टी का धरता था, वही यहां केवल मरने आया था। कल सारी रात यहीं पर पड़ा रहा। आज सुबह मर गया।'
पार्वती ने एक लम्बी सांस लेकर कहा-'क्या उसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता?'
दासी ने कहा-'महेन्द्र बाबू जानते होंगे, मैं कुछ नहीं जानती।'
महेन्द्र की बुलाहट हुई। उन्होंने कहा-'तुम्हारे देश के देवदास मुखोपाध्याय थे।'
पार्वती महेन्द्र के अत्यन्त निकट सरक आयी, एक तीव्र दृष्टि से देखकर पूछा-'क्या देव दादा? कैसे जाना?'
'जेब में दो चिट्ठियां थीं। एक द्विजदास की... '
पार्वती ने बाधा देकर कहा-'हां, उनके बड़े भाई की।'
'और एक काशी से हरिमती देवी ने लिखा था... '
'हां, वे मां है।'
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