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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


'कल मकान से आया हूं?'

'कल सारे दिन कहां थे? रात भी कहां थे?'

'ईडन गार्डन में।'

'पागल तो नहीं हो! क्या हुआ है।'

'सुनकर क्या करोगे?'

'नहीं कहो, अभी खाओ-पियो। तुम्हारा सामान कहां है?'

'कुछ भी साथ नहीं लाया हूं।'

'अच्छा रहने दो, अभी चलकर खाओ-पियो।' तब चुन्नीलाल ने जोर देकर खिलाया-पिलाया; शैया पर सोने का आदेश देकर दरवाजा बंद करते-करते कहा - 'अभी थोड़ी सोने की चेष्टा करो, मैं रात को आकर तुम्हें उठाऊंगा।' यह कहकर वे उस समय तक के लिए चले गये। रात को दस बजे उन्होने लौंटकर देखा कि देवदास उनके बिछौने पर गाढ़ी नींद में सो रहे हैं। उन्हें जगाया नहीं। एक कम्बल ओढ़कर नीचे चटाई पर सो रहे। रात-भर देवदास की नींद नहीं टूटी और प्रात:काल में भी सोते ही रहे। दस बजे उठकर बैठे। पूछा- 'चुन्नी बाबू, कब आये?'

'अभी आया हूं।'

'तुम्हें किसी तरह का कष्ट तो नहीं हुआ?'

'कुछ भी नहीं हुआ।'

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