लोगों की राय

उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


'सोचता हूं, यहां पर तुम्हारी शोभा नहीं है।'

पार्वती हंसकर कहती-'खूब शोभा है। हम लोगों का क्या? '

वृद्ध फिर लेटकर मन-ही-मन कहते - 'मैं समझता हूं, वह मैं समझता हूं। तब तुम्हारा भला हो। भगवान तुम्हें देखेंगे।'

इसी भांति एक महीना बीत गया। बीच में एक बार चक्रवर्ती महाशय कन्या को लेने आये थे। पार्वती अपनी इच्छा से नहीं गयी। पिता से कहा-'बाबूजी, बड़ी कच्ची गृहस्थी है, कुछ दिन बाद जाऊंगी।' वे भीतर-ही-भीतर हंसे और मन-ही-मन कहा- स्त्रियों की जाति ही ऐसी है। वे चले गये, पार्वती ने महेंद्र को बुलाकर कहा-'भाई, एक बार मेरी बड़ी लड़की को बुला लाओ।'

महेंद्र इधर-उधर करने लगा। वह जानता था कि यशोदा किसी तरह नहीं आयेगी। कहा-'एक बार बाबूजी का जाना अच्छा होगा।'

'छि: यह क्या अच्छा होगा? इससे तो अच्छा है कि हमीं मां-बेटे चलकर बुला लावें।'

महेंद्र ने आश्चर्य से कहा-'क्या तुम जाओगी?'

'क्या नुकसान है? मुझको इसमें लज्जा नहीं है। मेरे जाने से अगर यशोदा आवे, अगर उसका क्रोध दूर हो जाये, तो मेरा जाना कौन कठिन है?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book