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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


यशोदा सब तल्लीन होकर सुनती रही। अब एकाएक आत्म-विस्मरण कर पांव के पास धप् से गिरकर प्रणाम करके कहा-'तुम्हारे पांव लगती हूं मां।'

दूसरे दिन महेंद्र को अकेले में बुलाकर कहा-'क्यों क्रोध कम हुआ?'

यशोदा ने भाई के हाथ पर हाथ रखकर चटपट कहा- 'भैया, क्रोध के वश, छि-छि:, कितनी ही बातें कहीं हैं, देखो वे सब प्रकट न होने पावें।'

महेंद्र हंसने लगा। यशोदा ने कहा-'अच्छा भैया, क्या कोई सौतेली मां इतना आदर-भाव करती रख सकती है?'

दो दिन बाद यशोदा ने पिता से आकर आप ही कहा-'बाबूजी, वहां पर चिट्ठी लिख दो कि मैं अभी और दो महीने यहीं पर रहूंगी।'

भुवन बाबू ने कुछ आश्चर्य से कहा-'क्यों बेटी?'

यशोदा ने कहा-'मेरी तबीयत कुछ अच्छी नहीं है, इसी से कुछ दिन छोटी मां के पास रहूंगी।' आनंद से वृद्ध की आंखों में आंसू उमड़ आये। संध्या को पार्वती को बुलाकर कहा-'तुमने मुझे लज्जा से मुक्त कर दिया। जीती रहो, सुखी रहो!'

पार्वती ने कहा-'वह क्या?'

'वह क्या, यह तुम्हें नहीं समझा सकूंगा। नारायण ने आज कितनी ही लज्जा से मेरा उद्धार कर दिया।' संध्या के अंधेरे में पार्वती ने नहीं देखा कि उसके स्वामी की दोनों आंखें जल से डबडबा आयी हैं। और विनोद लाल - भुवन बाबू का छोटा लड़का, वह परीक्षा देकर घर आया, अभी तक पढ़ने ही न गया।

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