उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
'कुछ भी नहीं हुआ है।'
'नहीं कहोगे?' चुन्नीलाल ने बहुत देर बाद नीचा सिर किये हुए कहा-'देवदास मेरी एक बात रखोगे?' क्या?
'वहां पर तुमको एक बार और चलना होगा? मैंने वचन दिया है।'
'जहां उस दिन गया था?'
'हां।'
'छि:! वहां मुझे अच्छा नहीं लगता।'
'जिससे अच्छा लगेगा, मैं वही करूंगा।'
देवदास अन्यमनस्क की भांति कुछ देर चुप रहे; फिर कहा-'अच्छा चलो, मैं चलूंगा।'
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