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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


'नहीं, खूब शांत से काम नहीं है; वरन् कुछ दुष्ट हो, तुम्हारी तरह मुझसे झगड़ा कर सके।'

पार्वती ने मन-ही-मन कहा-यह तो कोई नहीं कर सकेगी देव दादा, क्योंकि इसके लिए मेरे समान प्रेम चाहिए। प्रकट में कहा-'मैं अभागिन क्या हूं, मेरे ऐसी न जाने कितनी हजार तुम्हारे पांव की धूलि लेकर अपने को धन्य मानेंगीं?'

देवदास ने मजाक से हंसकर कहा-'क्या अभी एक ऐसी ला सकती हो?'

'देव दादा, क्या सचमुच विवाह करोगे?'

'वैसा ही, जैसा मैंने बतलाया है।' केवल यही खोलकर नहीं कहा कि उसे छोड़ इस संसार में उनके जीवन की कोई सहवासिनी नहीं हो सकती!

'देवदास, एक बात बताओगे?'

'क्या?'

पार्वती ने अपने को बहुत संभालकर कहा-'तुमने शराब पीना कैसे सीखा?'

देवदास ने हंसकर कहा-'पीना भी क्या कहीं सीखना होता है?'

'यह नहीं तो अभ्यास कैसे किया?'

'किसने कहा - धर्मदास ने?'

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