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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


'नहीं कह सकती। दो महीने हुए लड़-झगड़कर चले गये, फिर तब से नहीं आये।'

देवदास को अब और आश्चर्य हुआ। पूछा-'झगड़ा क्यों हुआ?'

चन्द्रमुखी ने कहा-'क्या झगड़ा नहीं होता?'

'होता है, पर क्यों?'

'दलाली करने आये थे, इसी से हटा दिया।'

'किसकी दलाली?'

चन्द्रमुखी ने हंसकर कहा-'पट्टू की।' फिर कहा-'तुम नहीं समझते? एक बड़े आदमी को पकड़ लाये थे। महीने में दो सौ रुपये, एक सेट गहना और दरवाजे के सामने रहने को एक सिपाही मिलता था, समझे!'

देवदास ने सब समझने के बाद हंसकर कहा-'वह सब एक भी तो नहीं देखता हूं।'

'रहते तब न देखते! मैंने उन लोगों को हटा दिया।'

'उन लोगों का अपराध?'

'उन लोगों का अपराध कुछ ज्यादा नहीं था, पर मुझे अच्छा नहीं लगा।'

देवदास ने बहुत सोचकर कहा- 'उसी दिन से यहां और कोई नहीं आया?'

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