लोगों की राय

उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


'नहीं। उस दिन से क्यों? तुम्हारे जाने के बाद से ही यहां कोई नहीं आता। सिर्फ बीच-बीच में चुन्नीलाल आ जाते थे, किन्तु दो मास से वो भी नहीं आते।'

देवदास बिछौने के ऊपर लेट गये। दूसरी ओर देखने लगे, बहुत देर तक चुप रहने के बाद धीरे से कहा-'चन्द्रमुखी, तब दुकानदारी सब उठा दी?'

'हां, दिवाला निकाल दिया।'

देवदास ने इस बात का उत्तर न देकर कहा-'लेकिन रोटी-पानी कैसे चलेगा?'

'इसीलिए तो जो कुछ गहना-पत्तर था, बेच दिया।'

'उसमें अब कितना बचा है?'

'ज्यादा नहीं, कोई आठ-नौ सौ रुपये होंगे। उन्हें एक मोदी के पास रख दिया है, वह मुझे महीने में बीस रुपये देता है।'

'बीस रुपये से तो पहले तुम्हारा काम नहीं चलता था?'

'नहीं, आज भी अच्छी तरह से नहीं चलता है। तीन महीने से महान का किराया बाकी है, इसी से इच्छा होती है कि इन दोनों कड़ों को बेचकर सब पटाकर और कहीं चली जाऊं।'

'कहां जाओगी?'

'यह अभी निश्चय नहीं किया है। किसी सस्ते देश, गवई-गांव में जाऊंगी जिसमें बीस रुपये महीने में निर्वाह हो जाय।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book