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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


ललिता ने आँसू पोंछकर डरते-डरते कहा- मैंने कब तुम्हारा अपमान किया?

शेखर ने दम भर ठहरकर सहज भाव से कहा- अभी तनिक गौर करके देखने से तुम्हें मालुम हो जायगा। आजकल तुम बहुत अधिक मनमानी कर रही थीं. ललिता, विदेश जाने के पहले उसी को मैंने बन्द कर दिया है।

अब शेखर चुप हो रहा।

ललिता ने फिर कुछ नहीं कहा। वह सिर झुकाये खड़ी रही। भरी चाँदनी के उजेले में दोनों ही चुपचाप खड़े थे। केवल नीचे के खण्ड में काली की गुड़िया के ब्याह का शंख बज रहा था। उसी का शुभ शब्द बार-बार सुनाई पड़ता था। कुछ देर चुप रहने के बाद शेखर ने कहा-- अब यहाँ ठण्ड में न खड़ी रहो; नीचे जाओ।

''जाती हूँ,' कहकर ललिता ने इतनी देर बाद शेखर के पैरों में सिर रखकर प्रणाम किया, और फिर खड़े होकर धीरे से पूछा- मैं क्या करूँगी, बताये जाओ।

शेखर हँसा। एक बार तनिक दुविधा हुई, मगर उसके बाद उसने दोनोँ हाथ बढ़ाकर ललिता को खींचकर छाती से लगा लिया, और झुककर उसके अनूठे मधुर अधर में होठ छुआकर कहा- मुझे कुछ भी बताना नहीं पड़ेगा ललिता, आज से आप ही आप तुम सब समझने लगोगी।

ललिता के सारे शरीर में रोमांच हो आया। वह हटकर अलग खड़ी हुई और बोली- अच्छा, अकस्मात् तुम्हारे गले में माला पहना देने से ही क्या तुमने ऐसा किया?

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