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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


गिरीन्द्र के साथ ललिता के ब्याह की बातचीत शुरू हुई थी; किन्तु कोई भी उसको इसके लिए राजी न कर पावेगा। मगर अब तो वह किसी तरह चुप होकर बैठी नहीं रहेगी- अभी सब बातें प्रकट कर देगी। शेखर की आँखों में जलन होने लगी, चेहरा लाल हो गया। सच तो है! वह तो सिर्फ माला बदल कर हो नहीं रह गया, उसको छाती से लगाकर उसका मुँह भी चूम लिया है! ललिता ने रोका नहीं-दोष न समझकर ही नहीं रोका-इसका उसे अधिकार है, यह जानकर ही नहीं रोका। अब वह अपने इस आचरण की क्या कैफियत किसी को देगा?

यह निश्चय है कि माता और पिता की राय के बिना ललिता के साथ व्याह नहीं हो सकता; किन्तु गिरीन्द्र के साथ ललिता का ब्याह न होने का कारण प्रकट होने के बाद घर में या बाहर वह मुँह कैसे दिखावेगा?

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