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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।

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असम्भव जानकर शेखर ने ललिता की आशा बिलकुल ही छोड़ दी थी। पहले कई दिन तक वह मन में बहुत ही डरता रहा कि कहीं वह अचानक आ न जाय, कहीं सब हाल जाहिर न कर दे, कहीं इस मामले की जवाबदेही न उसे करनी पड़े! किन्तु किसी ने उससे कैफियत नहीं तलब की। कोई बातें प्रकट हुई या नहीँ, यह भी नहीं जाना गया, अथबा उस घर से इस घर कोई आया-गया तक नहीं। शेखर के कमरे के सामने जो खुली छत थी उसके ऊपर खड़े होने से ललिता के घर की सारी छत देख पड़ती थी। कहीं सामना न हो जाय, इस डर से शेखर इस छत पर खड़ा तक न होता था। लेकिन जब बिना विघ्न-बाधा के पूरा एक महीना बीत गया तब उसने सन्तोष की साँस लेकर मन में कहा-हजार हो, स्त्री-जाति के लज्जा-संकोच न होना असम्भव है, ऐसी बातों को वह प्रकट कर ही नहीं सकती। शेखर ने सुन रक्खा था कि स्त्रियों की छाती चाहे फट जाय, लेकिन मुँह नहीं खुलना चाहता। इस बात पर उसने विश्वास कर लिया, और स्त्रियों के भीतर इतनी दुर्बलता रखने के कारण मन में विधाता की बुद्धि की बड़ाई की। लेकिन फिर भी शान्ति क्यों नहीं प्राप्त होती? जब से उसने समझा कि अब कोई डर नहीं है तभी से एक अभूतपूर्व व्यथा उसके हृदय भर में रह-रहकर व्याप्त क्यों हो उठती है! रह-रहकर हृदय की गहरी से गहरी तह तक इस तरह निराशा, वेदना और आशंका से काँप क्यों उठता है? तब तो शायद ललिता कोई भी बात नहीं कहेगी? और एक आदमी के हाथ में सौंपदी जाने के समय तक चुपकी ही रहेगी। यह ख्याल मन में लाते भी, कि ललिता का व्याह हो गया है, वह ससुराल चली गई है, शेखर के भीतर और बाहर इस तरह आग सी क्यों लग जाती है?

पहले शेखर नियम से शाम को बाहर हवा खाने के लिए न जाकर कमरे के सामने की उसी खुली छत पर टहलता था। आज फिर वही करने लगा; किन्तु एक दिन भी उसे उस घर का कोई आदमी उस छत के ऊपर नहीं देख पड़ा। केवल एक दिन अन्नाकाली किसी काम के लिए आई थी, किन्तु ज्योंही उसकी नजर शेखर पर पड़ी त्योंही उसने आँखें नीची कर लीं, और शेखर के उसे पुकारने या न पुकारने का निश्चय करने के पहले ही वहाँ से वह गायब हो गई। शेखर ने समझ लिया कि उसके घर के लोगों ने जाने-आने की राह बन्द करके जो दीवार खड़ी कर दी है, उसका मतलब यह तनिक सी अन्नाकाली तक जान गई है।

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