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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


और भी एक महीना बीत गया।

एक दिन भुवनेश्वरी ने बातों ही बातों में कहा- इस बीच में तूने ललिता को किसी दिन देखा है शेखर?

शेखर ने सिर हिलाकर कहा- नहीं तो, क्यों?

मां ने कहा- ''लगभग दो महीने बाद कल मैंने उसे छत पर देखकर पुकारा था; लड़की जैसे बिलकुल बदल सी गई है, वह ललिता ही नहीं रही। बीमार-सी जान पड़ती है। मुँह सूख सा गया है, जैसे इतने ही अर्से में न-जाने कितनी उमर हो गई है। ऐसी गम्भीर हो रही थी कि देखकर किसकी मजाल है जो उसे चौदह बरस की लड़की कहे''-उनकी आखें डबडबा आईं। हाथ से आँसू पोंछकर भारी गले से कहने लगीं- मैली धोती पहने थी, जिसमें आँचल के पास थोड़ी सी सिलाई की हुई थी। मैंने पूछा- तेरे पास पहनने को धोती नहीं है बेटी! उत्तर में उसने कह तो दिया कि है, लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता। वह कभी अपने मामा की दी धोती नहीं पहनती; मैं ही उसे देती हूँ। इधर छः-सात महीने से मैंने भी उसे धोती या कोई कपड़ा नहीं दिया।

उनसे और आगे कुछ कहा नहीं गया। आँचल से आँसू पोंछने लगीं। ललिता को सचमुच वे अपनी लड़की के समान मानती और प्यार करती थीं।

शेखर दूसरी ओर ताकता हुआ चुपका बैठा रहा।

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