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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


बह्रुत देर बाद भुवनेश्वरी फिर कहने लगीं- तेरे सिवा और किसी से वह कभी कुछ माँग भी नहीं सकती। बेवक्त भूख लगने पर भी वह घर में किसी से मुँह फाड़कर कुछ मांगती नहीं थी। वह मेरे आसपास घूमती-फिरती थी, और मैं उसका मुँह देखते ही भाँप लेती थी कि यह भूखी है। मुझे रह-रहकर यही याद आता है शेखर-शायद सूखा हुआ मुँह लिये उसी तरह अपने घर में घूमती होगी, कोई समझता ही न होगा, पूछता भी न होगा? मुझे तो वह केवल मुँह से ही मां नहीं कहती, हृदय से मां मानकर उसी तरह श्रद्धा और भक्ति भी करती है। शेखर साहस करके मां की ऑर मुँह करके देख न सका; जिधर देख रहा था उधर ही देखते रहकर बोला- अच्छा तो मां, उसे क्या-क्या चाहिए, सो बुलाकर, पूछकर देतीं क्यों नहीं?

मां ने कहा- वह क्यों लेगी? तुम्हारे बाबूजी ने जाने-आने की ऊपर की राह तक बन्द कर दी है। और, मैं ही किस मुँह से देने जाऊँ? मान लिया, गुरुबाबू दुःख के मारे, चिन्ता की आग में जलते-जलते, बिना सोचे-समझे एक अनुचित काम कर ही बैठे, तो हमें अपने आदमियों की तरह छोटा मोटा प्रायश्चित्त कराकर उनका उद्धार करना चाहिए था- उनके उस दोष षर पर्दा डाल देना चाहिए था। यह तो हमने किया नहीं; उन्हें एकदम छोड़ दिया, गैर बना दिया! क्या यह ठीक हुआ? इसके सिवा, मैं तो यही कहूँगी कि तुम्हारे पिता के बेहद तंग करने से ही गुरुचरण ने अपना धर्म छोड़ दिया। तगादे पर तगादा होने से आदमी शर्म के मारे सभी कुछ कर सकता है। मैं तो कहती हूँ कि गुरु चरण ने अच्छा ही किया। यह गिरीन्द्र लड़का हम लोगों की अपेक्षा उनका कहीं अधिक अपना और हितैषी है। उसके साथ ललिता का ब्याह हो जाने से लड़की बड़े सुख से रहेगी, यह मैं कहे देती हूँ। सुनती हूँ, अगले महीने में ही ब्याह होनेवाला है।

एकाएक मुँह फेरकर शेखर ने पूछा- अगले ही महीने में होगा? सब ठीक हो गया?

''सुनती तो यही हूँ।''

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