सामाजिक >> परिणीता परिणीताशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
ललिता ने उसी तरह धीरे से कहा- हाँ, तुम्हीं से।
''मुझसे भला अब क्या कहने की बात हो सकती है।', कहता हुआ शेखर पहले से भी अधिक तेजी के साथ झटपट नीचे उतर गया।
ललिता कुछ देर उसी जगह सन्नाटे में आकर खड़ी रही, फिर बहुत ही हल्की दबी हुई साँस छोड़कर धीरे-धीरे चली गई।
दूसरे दिन प्रातःकाल शेखर अपने घर की बाहरी बैठक में बैठा उसी दिन का दैनिक-पत्र पढ़ रहा था। इसी बीच में बेहद विस्मय के साथ आँखें उठाकर उसने देखा, गिरीन्द्र उसके यहाँ आ रहा है। गिरीन्द्र नमस्कार कर के एक कुर्सी खींचकर शेखर के पास ही बैठ गया। शेखर ने भी नमस्कार करके अखबार एक ओर रख दिया और प्रश्न करने का भाव मुख पर लाकर उसकी ओर देखा। दोनों में देखने भर का परिचय था, बातचीत करने का अवसर नहीं आया था, और इसके लिए दोनों में से किसी ने आज तक इच्छा नहीं प्रकट की थी।
गिरीन्द्र ने एकदम पहले ही काम की बात छेड़ दी। बोला- विशेष प्रयोजन से आज मैं आपको कष्ट देने आया हूँ। मेरी सासजी का इरादा जो कुछ है सो तो आप सुन ही चुके हैं- वे अपना मकान आप लोगों के हाथ बेच डालना चाहती हैं। आज मेरे द्वारा उन्होंने कहला भेजा है कि जल्दी ही जो कुछ हो, इसका प्रबन्ध हो जाय, तो वे इसी महीने मुँगेर को लौट जा सकेंगी।
गिरीन्द्र को देखते ही शेखर के हृदय के भीतर आँधी उठ खड़ी हुई थी। गिरीन्द्र की बातें उसे तनिक भी अच्छी नहीं लगीं। उसने अप्रसन्न मुख से कहा- यह तो ठीक है, लेकिन पिताजी के न रहने से मेरे बड़े भाई ही अब घर के मालिक हैं। उन्हीं से यह सब कहना चाहिए।
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