सामाजिक >> परिणीता परिणीताशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
ललिता की जुबानी गिरीन्द्र सब हाल सुन चुका था। बोला- हाँ, तय और ही कुछ हुआ था, काली से ब्याह की बात नहीं हुई थी, यह सच है। गुरुचरण बाबू मरते समय मुझसे अनुरोध कर गये थे कि मैं और कहीं अपना ब्याह न करूँ। मैंने भी वचन दे दिया था। उनकी मृत्यु के याद ललिता दीदी ने मुझसे समझाकर कहा- 'अवश्य ही ये सब बातें और कोई नहीं जानता कि पहले ही उनका ब्याह हो गया है, और उनके स्वामी जीवित हैं।'
इस बात पर शायद और कोई विश्वास न करता लेकिन मैंने उनकी एक भी बात झूठ नहीं समझा-अविश्वास नहीं किया। इसके अलावा स्त्री का एक बार के सिवा दुबारा ब्याह नहीं हो सकता- यह क्या?
शेखर की आँखों में पहले ही आँसू भरे हुए थे, इस समय वे आँखों के कोनों से ढुलक-ढुलककर गिरीन्द्र के आगे ही बरसने लगे। किन्तु इधर का उसे होश ही न था। उसको इसका ख्याल ही न आया कि एक मर्द के आगे दूसरे मर्द की इस तरह की कमजोरी जाहिर होना बड़ी शर्म की बात है।
गिरीन्द्र चुपचाप शेखर की ओर ताकने लगा। उसके मन में पहले ही से सन्देह था--आज उसने निश्चित रूप से ललिता के स्वामी को पहचान लिया। शेखर ने आँसू पोंछकर भारी आवाज में कहा-- लेकिन आप तो ललिता को चाहते हैं न?
गिरीन्द्र के चेहरे पर प्रच्छन्न वेदना की गहरी छाया पड़ी; मगर फौरन् ही अपने को सँभालकर वह मुसकराने लगा। उसने पूर्वोक्त प्रश्न के उत्तर में धीरे-धीरे कहा- आपके इस प्रश्न का उत्तर देना अनावश्यक है। इसके सिवा स्नेह या प्यार चाहे जितना हो, जान-बूझकर कोई पराई व्याहता स्त्री से ब्याह नहीं करता। अस्तु, इस बात को जाने दीजिए। मैं अपने बड़ों के बारे में इस तरह की बातचीत नहीं करना चाहता।
एक बार और हँसकर गिरीन्द्र उठ खड़ा हुआ। ''अच्छा, तो आज चलता हूँ, फिर मुलाकात होगी'' कहकर नमस्कार करके वह चल दिया।
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