लोगों की राय

उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


भारती बोली, “अभी आपको एक कष्ट और दूंगी।”

अपूर्व बोला, “कैसा कष्ट?”

भारती बोली, “नीचे से मैंने कोयला लाकर रख दिया है। उड़िया लड़के को बुलाकर आपके चूल्हे को मंजवा दिया है। चावल है, दाल है, परवल, घी, तेल, नमक सब है। पीतल की बटलोई ला देती हूं। थोड़ा-सा पानी लेकर धो लें और चढ़ा दें। कठिन काम नहीं हैं, मैं सब बता दूंगी। आप केवल चढ़ाएंगे और उतारेंगे। आज यह कष्ट उठा लीजिए, कल दूसरी व्यवथा हो जाएगी।”

अपूर्व ने पल भर मौन रहकर पूछा, “लेकिन आपके भोजन की व्यवस्था क्या होती है? कब अपने डेरे पर जाती हैं?

भारती ने कहा, “डेरे पर भले ही न जाऊं, लेकिन हम लोगों को भोजन के लिए चिंता नहीं करनी पड़ेगी।”

अपूर्व ने घंटे भर में रसोई तैयार की। भारती कमरे की चौखट के बाहर खड़ी होकर बोली, “यहां खड़े रहने से तो कोई दोष नहीं होता आपके खाने में?”

अपूर्व बोला, “होता तो आप खड़ी न रहतीं।”

जीवन में पहली बार अपूर्व ने रसोई बनाई है। हजारों कमियां देखकर बीच-बीच में भारती का धीरज टूटने लगा। लेकिन जब कटोरे में डालते समय दाल इधर-उधर बिखर गई तब वह सहन न कर पाई। क्रोध से बोली, “आप जैसे निकम्मे आदमियों को भगवान न जाने क्यों जन्म देते हैं? केवल हम लोगों को परेशान करने के लिए?”

खाने के बाद अपूर्व ने कहा, 'अच्छा, क्या मामला है, अब मुझे साफ-साफ बताइए। इधर और भी दस आदमियों को चेचक की बीमारी हुई है। तिवारी को हुई है। यहां तक तो समझ गया, पर जब इस मकान को छोड़कर आप सभी लोग चले गए तो इस बंधुहीन देश में और इससे भी अधिक बंधुहीन नगर में आप उसके लिए प्राण देने के लिए कैसे ठहर गईं? क्या जोसेफ ने कोई आपत्ति नहीं की?”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book