लोगों की राय

उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


भारती लौट पड़ी। अंदर जाकर देखा, वहां अपूर्व नहीं है। तिवारी अकेला पड़ा है, वह बरामदे में भी नहीं था। कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। चारों ओर नजरें दौड़ाकर देखा, स्नानघर का दरवाजा खुला है, दरवाजे के अंदर गर्दन बढ़ाकर देखा तो उसके भय की सीमा नहीं रही। अपूर्व फर्श पर पड़ा था। दोपहर को जो कुछ खाया था, उलट दिया था। आंखें बंद हैं और शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। पास जाकर बोली, “अपूर्व बाबू!”

अपूर्व ने आंखें खोलकर देखा लेकिन फिर तत्काल आंखें मूंद लीं। एक पल दुविधा के बाद भारती उसके पास आ बैठी और माथे पर हाथ रखकर बोली, “उठकर बैठना होगा। सिर पर और मुंह में जल न देने पर तबीयत ठीक नहीं होगी। अपूर्व बाबू!”

अपूर्व उठ बैठा। भारती हाथ पकडकर उसे नल के पास ले गई, और नल खोल दिया। उसने हाथ-मुंह धो डाले। भारती उसे धीरे-धीरे कमरे में ले आई और चारपाई पर लिटाकर आंचल से उसके हाथों और पैरों का पानी पोंछ डाला। फिर पंखे से हवा करती हुई बोली, “जरा सोने की कोशिश करो। आपके स्वस्थ न होने तक मैं यहीं रहूंगी।”

अपूर्व लज्जित होकर बोला, “लेकिन आपका खाना?”

भारती बोली, “आपने खाने का अवसर ही कहां दिया।”

पलभर चुप रहकर अपूर्व ने पूछा, “अच्छा आपको मिस भारती कहकर न पुकारने पर आप क्या नाराज होंगी?”

“जरूर, लेकिन केवल भारती कहकर पुकारने पर नहीं होऊंगी।”

“लेकिन और लोगों के सामने?'

“भारती हंसकर बोली, “और लोगों के सामने भी। लेकिन अब चुप होकर जरा सो जाइए। मुझे काफी काम करने हैं।”

अपूर्व बोला, “सोते हुए डर लगता है। पीछे कहीं तुम चली न जाओ।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book