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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


वह जैसे आया था उसी तरह लौट गया और जाकर सो गया।

नींद जब टूटी तो सवेरा हो चुका था।

भारती ने आकर कहा, “मैं अब जा रही हूं।”

अपूर्व हड़बड़ाकर उठ बैठा। लेकिन अभी वह अच्छी तरह होश में भी न आया था कि वह कमरे से निकलकर भाग पड़ी।

तिवारी रोग मुक्त हो चुका है लेकिन अभी कमजोरी बाकी है। जो आदमी अपूर्व के साथ मामो गया था, वही रसोई बना रहा है। तिवारी को बचाने के लिए अपूर्व के ऑफिस के अधिकारियों ने अथक परिश्रम किया था। रामदास तो कई दिन घर भी नहीं जा सका था। शहर के एक बड़े डॉक्टर से इलाज कराया गया था। बर्मा देश तिवारी को कभी अच्छा नहीं लगा। अपूर्व ने उसे छुट्टी दे दी है। निश्चय हुआ कि कुछ और स्वस्थ हो जाने पर वह घर चला जाएगा। अगले सप्ताह में शायद यह सम्भव होगा।

उस दिन की गई भारती फिर नहीं आई। तिवारी कभी सोचता-भारती बहुत चालाक लड़की है। अपूर्व के आने का समाचार पाकर भाग गई। कभी सोचता-अपूर्व ने यहां आने के बाद शायद उसका अपमान किया हो। अपूर्व स्वयं कुछ न बताता। उससे पूछते हुए तिवारी डरता कि उसकी पूछताछ से बातें खुल जाएंगी। उसके हाथ का छुआ जल उसने पिया है। उसका पकाया हुआ साबू-बार्ली खाया है। शायद जाति इतने भयंकर रूप से नष्ट हो गई है कि उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है। तिवारी ने निश्चय कर रखा था कि कलकत्ता पहुंचकर वह अपने गांव चला जाएगा। वहां गंगा-स्नान करके, किसी ब्राह्मणों को भोजन कराके, शरीर को काम-काज चलाने योग्य शुद्ध कर लेगा। इधर-उधर की बातों में यहां की बातें अपूर्व की मां के कानों तक पहुंचा देने से क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। हालदार परिवार की नौकरी जाएगी, साथ ही समाज में बदनामी भी हो जाएगी।

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