लोगों की राय

उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

12 पाठक हैं

भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


परन्तु सुधा ! कायरता से तो काम नहीं चलेगा।

जीना मरना तो अपने बस में है ही नहीं। औऱ बीस वर्षों में कितनी ही बार मनन की इच्छा करने के बावजूद भी तो मर नहीं पाई तुम।

साँसो की डोर का नाम जीवन है औऱ जब तक यह डोर हैं दूसरों की इच्छा और इशारों पर बिना सोचे समझे चलते रहना होगा।

इस रास्ते पर जब चलना ही है तो इतने आँसू बहा कर तो तू एक कदम भी नहीं चल पायेगी।

अब हिम्मत कर। देख, वो लोग तुम्हें लेने आ पहुँचे।

दुल्हा कब से तैयार बैठा है, दहेज का सारा सामान बक्सों में बन्द किया जा रहा है। किस प्रकार एक-एक चीज को वो लोग गिन रहे हैं? इतना सोना है, इतने बर्तन हैं, इतने कपड़े हैं, इतन बिस्तर है, सिलाई मशीन, श्रृंगारदान, पलंग, फर्नीचर सभी तो बाहर जा रहा है औऱ इन सब के बाद तू भी इन सब चीजों की तरह इस घर से बाहर ढकेल दी जायेगी।

फिर तू इस घर के लिए अजनबी बन जायेगी।

इन इतनी सारी बेजबान चीज्रों की तरह तुझे भी तो जाना ही हैं। तू भी तो इन्ही में से एक हैं।

नहीं, यह सारी चीजें तो तुमसे कीमती हैं।

इसीलिए तो उनके घर के सारे लोग बार-बार उन चीजों को ही उलट-पुलट कर देख रहे हैं। एक-एक करके सँभाल रहे हैं। सँभाल-सँभाल कर बाहर लिए जा रहे हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book