उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
औऱ तेरी तरफ तो कोई देखता नहीं।
तेरा तो किसी को ध्यान भी नहीं।
हाँ, अब आँसू बहाना बन्द कर री, दुल्हन।
बिदाई के गीतों का खिंचाव वातावरण को कितना उदास बना रहा है।
देखो, देखो कितना सुन्दर दृश्य है।
एक तरफ रोती आँखं है, दूसरी तरफ हँसते चेहरे हैं।
एक तरफ उदास दिल हैं औऱ दूसरी तरफ विजय औऱ हर्ष से धड़कते चेहरे हैं। कुछ लोग इतने उदास हो चुके हैं और उसी जगह, उसी छत के नीचे उन्हीं के सामने बहुत से लोग इस तरह चहक रहे हैं।
एक की पराजय दूसरे की विजय है। एक का लुटना दूसरे का श्रृंगार है।
यह कैसा दस्तूर है? यह कैसा समझौता है? यह कैसी रस्म है?
और बाबुल के गीत उबले आ रहे हैं।
औऱ लड़कियाँ उससे लिपट-लिपट कर रो रही हैं।
'चल री, दुल्हन। छोड़ बाबुल का घर, छो़ड़ अपना मायका।,
"दीदी। दीदी, कहाँ हो तुम?
दीदी तुम गश खा कर इस तरह बेहोश होकर क्यों गिर पडी़ हो?
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