उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
तुमने तो मेरी रक्षा करने की सौगन्ध खाई थी। क्या यही है तुम्हारी सौगन्ध कि एक अबला नारी पर इस तरह जुल्म ढ़ाओ?
अच्छा तो मैं तुम्हें एक औऱ बात बताऊँ? कल रात जब जागते-जागते बहुत देर हो गई तो तुम्हें एक खत लिखने बैठ गई औऱ लिख गई एक गीत...चन्द आँसू।
मैं कोई कवि तो हूँ नहीं। कविता जानती भी नहीं। कविता की कसौटी पर शायद यह गीत पूरा न उतरे परन्तु इसमे मेरे हृदय के सारे भाव हैं। सुनोगे?
मेरे साथी !
एक रास्ता था
एक मँजिल थी
हम दो अकेले
औऱ न कोई
दूर एक तारा
राह दिखलाता
पथ चमकाता
रोशन-रोशन
सारी दुनियाँ
जनम जनम का
साथ हमारा।
मेरे साथी !
यह कैसा तूफाँ?
आया कहाँ से?
रूठ गये तुम?
देकर आँसू
तारा डूबा-
रास्ता खोया
मँजिल बिछुड़ी
चैन कहाँ अब?
रात के आँसू
किसे दिखाऊँ?
नीर बहाऊँ।
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