उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
मेरे साथी !
धीर बंधा जा-
आस दिला जा-
मैं हूँ अकेली-
और यह जमाना।
तेरा सहारा-
कितना बड़ा था?
वह जो खोया
जी न सकूँगी।
कह देती हूँ-
रूठ चलूँगी।
दुनियाँ मुझको
लाख मनाये-
मैं न मनूंगी।
मेरे साथी !
सच कहती हूँ –
दूर कहीं
मैं चली चलूँगी।
तेरे सहारे –
टूट गये तो –
सारे रिश्ते –
तोड़ चलूँगी।
फिर एक तारा
बन जाऊंगी –
इस दुनियाँ से
कैसा रिश्ता?
किसके लिए मैं –
क्यों जियूँगी?
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