उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
मेरे साथी !
तुमने कहा था
मेरी पूजा-
करते रहोगे।
जब मर जाऊँ-
इस दुनियाँ को-
यह बतलाना-
एक थी बिरहन
आई कहाँ से?
चली कहाँ को?
रूठ चली है
दुख से,
सुख से।
मेरे साथी !
उस रास्ते को
उस अम्बर को
उस पूजा को –
उस दुनियाँ को-
उन यादों को
ले के जियोगे।
सदा जियोगे
अमर रहोगे।
सारी खुशियाँ
तुम पै निछावर !
तुम पै निछावर !
तुम पै निछावर !!!
दुख अपने-तेरे
हम लिए चले हैं।
आँसू बहाती हुई
तुम्हारी प्रियतमा
तुम्हारी प्रियतमा
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