उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
मेरे निर्दयी स्वामी,
हाँ, तुम्हें अचम्भा हुआ था न?
खुद मुझे भी हुआ था। परन्तु क्या करुं? मेरे मन के भाव जो ऐसे थे। बहुत कुछ कहना चाहती थी, दिल में तूफान ही तूफान भरे थे। तूफानों ने आप ही आप यह रूप धारण कर लिया। इसमे मेरा क्या बस।
परन्तु यह क्या? तुम रूठ गये कि मैंने मरने की बात क्यों की?
नहीं स्वामीनाथ, मेरा जीवन-मरण तो अब तुम्हारे कदमों में है। भावुकता के हाथों पराजित हो कर मन में ऐसा विचार आया। इसके लिए मुझे क्षमा करना।
सच कहती हूँ अब तो तुम्हारे दर्शनों बिना मर भी न पाऊंगी। इतने मोह-बन्धन में जो बाँध रखा है तुमने।
देखो न जब मैंने तुम्हें यह पत्र लिखा था तो अनुभव किया था- दिल बहुत हल्का हो गया है परन्तु अब जब तुम्हारा पत्र आया है और कविता का उत्तर कविता से मिला है, एक अजीब सा सन्नाटा छा गया है मन पर।
लगता है इसमें तम्हारा तो कोई दोष नहीं है फिर गिला तुमसे ही क्यों किया जाये। और फिर यह कविता मेरे देव। इस कविता को तो में कितनी ही बार पढ़ चुकी हूँ।
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