उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
परन्तु इतनी कठोर तपस्या - कि मुझसे मिलोगे भी नहीं? मुझे देखने आओगे भी नहीं?
आ सकते भी नही, नहीं-नहीं,इस बात को तो मैं मानती नहीं।
सिर्फ एक बिनती करती हूँ। केवल एक बार आ जाओ औऱ मुझे सब समझा जाओ कि इस बिछोह का कारण क्या है? आओगे न?
सुधा
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मेरे कठोर प्रियतम,
नहीं आओगे? नही आओगे न? न आने की सौगन्ध खा रखी है न।
खतों में इतना प्यार जताते हो। बार-बार कहते हो मैं तुम्हारे पास तो रहता हूँ। यह दूरी कहाँ है?
परन्तु तुम क्या जानो? तुम क्या जानो कि तुम सचमुच दूर होते जा रहे हो। सचमुच भूल गये हो।
तुम कुछ भी नहीं जानते? मैं भी कुछ नहीं बताऊँगी।
बार-बार बुलाती हूँ.....बुलाती रहूँगी। तुम्हारे बातये हुए रास्ते पर चलती रहूँगी। देखें -यह प्राण-पखेरू कब तक साथ देते हैं?
तुम्हें याद है कि एक रोज़ जब तुम यहाँ थे घर में बड़ा तूफान आ खड़ा हुआ था।
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