उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
सदैव हम लोग प्यासे ही रहे हैं।
इसीलिये तो बार-बार बिछुड़ते हैं। बार-बार मिलते हैं।
तुमने लिखा है कि मैं बहुत भावुक हूँ इसीलिए इस तरह घबरा जाती हूँ।
हाँ, तुमने सच ही जाना। तुम यही समझो।
तुम यही समझते रहोगे तो दुख की मात्रा बहुत कम हो जायेगी। यह तो न होगा कि आत्मा बार-बार कचोटे लगाती रहेगी कि मेरे कारण तुम दुखी हुए।
नहीं-नहीं मेरे देवता ! तुम दुख बिल्कुल न करो। मै सब सहूँगी। एक-एक बात सहूँगी परन्तु तुम्हें शिकायत का मौकान मिलेग। तुमने जो राह दिखायी थी उसी पर चलती रहूँगी। जब तक कि प्राण हैं औऱ साँसें हैं....क्योंकि यह प्राण औऱ साँसें तो अब तुम्हारी हैं।
इन पर अब मेरा क्या अधिकार। मैं तो अपने-आपको तुम्हें अर्पँण कर चुकी हूँ। जिस तरह कहोगे, रहूँगी।
परन्तु क्या इन लोगों ने तु्म्हारे पास भी कोई पत्र लिखा है? देखो सच बताना।
कल ही माँ जी कह रही थीं कि उन्होंने तुम्हें कुछ लिखा है। क्या लिखा है? मेरे प्राण, मुझे बताओगे नहीं कि क्या लिखा है? और अब मेरे लिए तुम्हारा क्या हुक्म है? मैं क्या करूँ? कैसे करूँ?
तुम्हारी तरह महान तो बन नहीं सकती। कभी-कभी सोचती हूँ कि इन हालात में रहते हुए तुम इतने शान्त स्वभाव के, इतने गंभीर, इतने ऊँचे विचारों के कैसे बन पाये?
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