उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
सचमुच यह तुम्हारी विशालता ही तो है कि तुम सहते हो औऱ फिर भी हर एक के सुख के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हो।
परन्तु मैं तो एक मूर्ख लड़की हूँ। इतनी मूर्ख कि किसी के मन को जान पाती नहीं। हर एक को दिल का प्यार दे बैठती हूँ।
खुद सारा जीवन प्यार के लिए तरसती रही हूँ न। इसीलिए जो जरा-सा भी प्यार देता है उसे बहुत समझ कर विश्वास कर बैठती हूँ। अच्छाई-बुराई का ज्ञान नहीं है। दुनियादारी आती नहीं। समझ में नहीं आता, करूँ तो क्या करूँ?
सच मेरे देवता, तुम्हारे बताये हुए रास्तों पर चलने का साहस भर कोशिश करती हूँ?
तुम्हारी ही आँखों से दुनियाँ देखी थी। तुम्हीं ने पहले दिन सब के विषय में सब कुछ बताया था।
तुम स्वयं इतने अच्छें हो कि किसी की खोट पर तुम्हारी निगाह जाती ही नहीं। हर एक में अच्छाइयाँ ही अच्छाइयाँ देखते हो औऱ अच्छाइयों की ही प्रशंसा करते हो।
सभी के विषय में जो कुछ तुमने बताया था मैने तो उस पर विश्वास कर लिया औऱ उसी तरह हर एक से बर्ताब किया परन्तु जाने क्या बात है कि यूँ लगता है या तुमने बताने में कहीं पक्षपात किया या मैंने समझने में कोई गलती की।
अपनी समझ से परिस्थितियों के अनुसार अपने-आपको बदलने की औऱ समझौता करने की साहस भर कोशिश करती रहती हूँ।
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