उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
प्राणनाथ,
पत्र का उत्तर जल्दी न दे सकी।
इसका कारण बताऊंगी नहीं। केवल इतना जान लो कि ठीक हूँ।
तुमने यह क्या लिख दिया कि कोई दुःख है? नहीं-नहीं मैने तो कभी कुछ नहीं कहा। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं लिखा कि तुम्हें इस तरह शर्मिन्दा होना पडे़। यह शर्मिन्दगी जताकर तुमने मेरी आत्मा पर मनों बोझ डाल दिया है।
मेरे देवता, मुझे तो मान है कि तुम्हारी पत्नी हूँ। सच कहती हूँ, इन जेठानियों की तरह मैं झूठे मान पर नहीं इतराती फिरती। मुझे तो आन्तरिक गर्व है कि तुम मेरे सरताज हो। फिर भला इस बात में शर्मिन्दगी कैसी?
तुम मुझे ब्याह कर लाये तो यह तुम्हारे पिता जी का आदेश था। तुमने तो कहा था कि अभी एक-आध साल के बाद जब तुम आत्म-निर्भर हो जाओगे तभी ब्याह करोगे, यह सब मैं जानती हूँ। यह भी जानती हूँ कि तुम इससे भी बडे़-बडे़ अन्याय खामोशी से सहन कर लेते हो।
सिर्फ इसीलिए तो तुम इतने अच्छे लगते हो और मैं यह सारे दुःख सिर्फ इसीलिए ही चुपचाप सहन कर पाने का साहस कर लेती हूँ।
परन्तु तुम मेरे लिए इतना दुख न करो। अब हम दोनों साथ ही हैं। सदा-सदा के साथी हैं। काश ! मेरे बस में होता तो तुम्हारी राहों के सारे कांटे मैं अपनी पलकों से चुन लेती।
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