उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
तुमने लिखा है कि कुछ ही महीनों में तुम इस योग्य हो सकोगे कि मुझे अपने पास बुला लो। और उस समय तक के लिए मैं अपने मायके चली जाऊं।
परन्तु यह कैसे हो सकता है? मै भला मायके क्यों जाऊँगी? तुम्हारे इस तप औऱ त्याग में तो मुझे तुम्हारा हाथ बंटाना है।
मुझसे इस साथ का अधिकार क्यों छीन रहे हो? औऱ फिर मेर मायका? ऐसी बातें न करो कि मुझे अपना पिछला जीवन याद आ जाये। भगवान के लिए मुझे खामोशी से इस आग में जलने दो। मुझे आन्तरिक आनन्द मिलता है।
सचमुच, मैं झूठ नहीं कह रही हूँ। लगता है इतनी बडी़ दुनियाँ के निर्माण का बोझ केवल तुम्हारे कन्धों पर ही नहीं, मेरे कंधे भी इस बोझ को उठाए हुए हैं।
सिर्फ एक बात से कभी-कभी घबरा उठती हूँ।
और वह है तुम्हारी निन्दा। जो यह लोग हर समय करते रहते हैं। मेरे साथ यह लोग जो बर्त्ताव चाहें कर लें परन्तु तुम्हारी निन्दा क्यों करते हैं? हर समय यह सारे लोग तुम्हारी बुराई करते रहते हैं, लगता है मानो इनको और कोई काम ही नहीं है। बस समस्त शक्तियां इसी बात पर केन्द्रित किये रहते हैं कि तुम्हारे विषय में चर्चा करते रहें।
मेरे साथ चाहे जितना बुरा सलूक यह करें परन्तु तुम...
तुम्हारे विषय में मैं ऐसे शब्द कैसे सुन सकती हूँ? बार-बार शरीर सुलगता रहता है।
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