लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


उस भले आदमी ने चट से मेरे दाहिने हाथ को पकड़कर कहा, “क्या आप आज रात को श्मशान जा सकते है?” मैं हँसकर बोला, “जा सकता हूँ, बचपन से ही मैं अनेक रात्रियों में अनेक श्मशानों में गया हूँ।” वृद्ध चिढ़कर बोल उठे, “आप शेखी मत बघारिए बाबू।” इतना कहकर उन्होंने उस श्मशान का, सारे श्रोताओं को स्तम्भित कर देने वाला, महाभयावह विवरण विगतवार कहना शुरू कर दिया। “यह श्मशान कुछ ऐसा-वैसा स्थान नहीं है। यह महाश्मशान है। यहाँ पर हजारों नर-मुण्ड गिने जा सकते हैं। इस श्मशान में, हर रात को, महाभैरवी अपने साथियों सहित नर-मुण्डों से गेंद खेलती हैं और नृत्य करती हुई घूमती हैं। उनके खिलखिला कर हँसने के विकट शब्द से कितनी ही दफे, कितने ही अविश्वासी अंगरेज जजों, मजिस्ट्रेटों के भी हृदय की धड़कन बन्द हो गयी है।” इस किस्म की लोमहर्षक कहानी वे इस तरह से कहने लगे कि इतने लोगों के बीच, दिन के समय, तम्बू के भीतर बैठे रहने पर भी, बहुत से लोगों के सिर के बाल तक खड़े हो गये। तिरछी नजर से मैंने देखा कि प्यारी न जाने कब पास आकर बैठ गयी है और उन बातों को मानो सारे शरीर से निगल रही है।

इस तरह जब वह महाश्मशान का इतिहास समाप्त हुआ तब वक्ता ने अभिमान के साथ मेरी ओर कटाक्ष फेंककर प्रश्न किया, “क्यों बाबू साहब, आप जाँयगे?”

“जाऊँगा क्यों नहीं?”

“जाओगे! अच्छा, आपकी मरजी। प्राण जाने पर-”

मैं हँसकर बोला, “नहीं महाशय, नहीं। प्राण जाने पर भी तुम्हें दोष न दिया जायेगा, तुम इससे मत डरो। किन्तु बेजानी जगह में मैं भी तो खाली हाथ नहीं जाऊँगा - बन्दूक साथ जायेगी!”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book