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धर्म एवं दर्शन >> श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्र

श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्र

महर्षि वेदव्यास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9724

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महाभारत के अन्त में भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को दिये गये परमात्म ज्ञान का सारांश भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों में।


अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः ।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः॥111॥

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः ।
वीरहा रक्षणः सन्तो जीवनः पर्यवस्थितः॥112॥

अनन्तरूपोऽनन्तश्रीर्जितमन्युर्भयापहः ।
चतुरस्त्रो गभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः॥113॥

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मीः सुवीरो रुचिरांगदः ।
जननो जनजन्मादिर्भीमो भीमपराक्रमः॥114॥

आधारनिलयोऽधाता पुष्पहासः प्रजागरः ।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः॥115॥

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत्प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्युजरातिगः॥116॥

भूर्भुवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः॥117॥

यज्ञभृद्यज्ञकृद्यज्ञी यज्ञभुग्यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृद्यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च॥118॥

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनन्दनः स्त्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः॥119॥

शंखभृन्नन्दकी चक्री शांर्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः॥120॥

॥ सर्वप्रहरणायुध ॐ नम इति॥

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