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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ


भगवती

एक कहावत है - यथा राजा तथा प्रजा। औरंगजेब बादशाह तो हिंदुओं पर अन्याय-अत्याचार करता ही था, उसके नीचे के मुसलमान अधिकारी उससे भी अधिक अत्याचार करते थे। उन दिनों एक-एक जिले के अधिकारी भी जब जिले में घूमने निकलते थे, तब प्रजा में हाहाकार मच जाता था। लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते थे। ये अधिकारी हिंदू-प्रजा को लूटते थे, उनकी सुन्दरी कन्याएँ छीन ले जाते थे और मन्दिरों को तोड़ दिया करते थे।

बिहार प्रान्त के एक जिले का शासक मिर्जा अपने सिपाहियों के साथ नाव में बैठकर गंगाजी में घूमने निकला था। जब उसकी नाव एक गाँव के सामने पहुँची तो उसने देखा कि किनारे घाट पर कुछ लड़कियां स्नान कर रही हैं। उनमें एक लड़की बहुत ही सुन्दरी थी। मिर्जा ने नाव रुकवा दी। मुसलमान सैनिकों को देखकर सब लड़कियाँ डर के मारे झटपट वहाँ से अपने-अपने घर चली गयीं।

मिर्जा ने नाव किनारे लगा दी। आस-पास पता लगाने से यह उसे मालूम हो गया कि वह नहाने वाली सुन्दर लड़की उसी गाँव के ठाकुर होरिलसिंह की बहन है और उसका नाम भगवती है। मिर्जा ने होरिलसिंह को बुलवाया और उनसे बोला- 'मैं आपकी बहिन को अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ। आपको इसके बदले मैं पाँच हजार अशर्फियाँ और जागीर दूँगा।'

ठाकुर होरिलसिंह की आँखें मिर्जा की बात सुनते ही लाल हो गयीं। वे कड़ककर बोले- 'बस, चुप रह! ऐसी बात तूने फिर कही तो तेरा सिर काट लूँगा।’

मिर्जा डर के मारे पीछे हट गया, लेकिन उसके इशारे से उसके आदमी होरिलसिंह पर टूट पड़े। उन लोगों ने होरिलसिंह को पकड़कर उनके हाथ-पैर बाँध दिये और नाव के भीतर डाल दिया। यह खबर होरिलसिंह के घर पहुँची तो उनकी स्त्री रोने-पीटने लगी। वे क्रोध के मारे भगवती को बुरा-भला कहने लगीं कि वह घाट पर नहाने क्यों गयी थी।

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