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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


दुर्गादास ने आशीर्वाद देकर पूछा- भाई, तुम कौन हो? यह सब मैं कौतुक देख रहा हूं या स्वप्न?

रूपसिंह उदावत ने, जो पीछे रह गया था आगे बढ़कर राम-जुहार की और बोला- महाराज! इस वीर राजपूत का नाम गंभीरसिंह है, आपके पास आने के लिए इधर-उधर विकल घूम रहा था, दैवयोग से यह हमें मिला। हम लोग भी इसी की भांति व्याकुल थे। क्या करते? चारों ओर से मुगलों ने पहाड़ी को घेर रखी है। गंभीरसिंह ने यही उपाय सोचा और ऐसी सांस चढ़ाई कि तीन जगह खोलकर देखने पर भी मुगलों को सन्देह न हुआ। सच पूछिए तो आपकी सहायता पहुंचाने वाला महासिंह नहीं; किन्तु गंभीरसिंह ही है।

दुर्गादास ने गंभीरसिंह को छाती से लगा लिया और कहा- ‘बेटा गंभीरसिंह! आज से हमें विश्वास हो गया कि मारवाड़ देश तेरा आजीवन ऋणी रहेगा। तेरी चतुराई, साहस और परिश्रम के बल पर ही मारवाड़ स्वतंत्र होगा।

रूपसिंह उदावत ने कहा- ‘महाराज! सूर्य अस्त हो चुका, मार्ग अटपट है, अंधेरा हो जाने से कष्ट की सम्भावना है इसलिए जहां तक हो सके, शीघ्र ही चलिए। राजपूत भी भूखे हैं और इस मार्ग की रोक पर मुगल भी इने गिने हैं। बस थोड़ा ही परिश्रम करने पर पौ बारह है।

वीर दुर्गादास की आज्ञा पाते ही राजपूत पहाड़ी से उतरे और भूखे सिंह के समान मुगलों पर टूट पड़े। क्षण मात्र में ही वीर राजपूतों ने सैकड़ों मुगलों का सिर धड़ से अलग कर दिया। इतने मुगलों में कोई बेचारा घायल भी न बचा कि अपने सरदार को खबर देता।

वीर दुर्गादास अब निश्चिन्त था, किसी प्रकार की बाधा दिखाई न देती थी। अरावली की पहाड़ियों को पार करके लोग एक मैदान में यह सलाह करने के लिए जमा हुए कि अब क्या करना चाहिए? कहां चलना चाहिए? एकाएक किसी की आवाज ने सबको चौंका दिया.... 'अरे दुष्ट। मुझे क्यों मारता है? क्यों नष्ट करता है? मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है? अरे, रक्षा करो, कोई बचाओ। पापी, अबला पर क्या बल दिखाता है? अच्छा, मुझे भी तलवार दे, वीर दुर्गादास उधर ही दौड़ा, जिधर से यह आवाज आ रही थी। पीछे-पीछे गंभीरसिंह और जसकरण भी थे। दुर्गादास ने यह देखा कि एक अबला पर एक पुरुष बलात्कार करना चाहता है; परन्तु अन्धकार के कारण पहचान न सका। डपटकर पूछा तू कौन है?

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