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धर्म एवं दर्शन >> कृपा

कृपा

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9812

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


नाथ कृपाही को पंथ चितवत दीन हौं दिन राति। प्रभु! मैं दीन हूँ और दिन-रात आपकी कृपा का मार्ग देख रहा हूँ। फिर आगे गोस्वामीजी दूसरी पंक्ति में कहते हैं - प्रभु! मैं यह भी तो नहीं जानता कि आपकी कृपा मुझ पर कब होगी? इसलिए यहीं बैठकर प्रतीक्षा कर रहा हूँ -

होइ धौं केहि काल दीनदयालु! जानि न जाति।। (वि.प. 211/1)


गोस्वामीजी एक और पद में भी यही बात दुहराते हुए कहते हैं कि मैं यह तो कह सकता हूँ कि जिसे स्वर्ग पाना हो उसे सौ अश्वमेध यज्ञ करने चाहिये, पर आपकी प्रसन्नता किस गुण या आचरण से प्राप्त होती है यह नहीं जानता। बस! इसीलिए आपकी कृपा की बाट देखता रहता हूं -

केहि आचरन भलौ मानैं प्रभु सो तौ न जानि परयो।
तुलसिदास रघुनाथ कृपा को जोवत पंथ खरयो।। (वि. प. 239/7)


फिर एक और पद में वे कहते हैं - प्रभु!

जब कब निज करुना सुभावतें, द्रवहु तौ निस्तरिये।
तुलसिदास विस्वास आन नहिं कत पकि-पचि मरिये।। (वि.प.186/6)


जब भी आप अपने दयालु स्वभाव से द्रवित होकर मुझ पर कृपा कर देंगे उस समय मेरा कल्याण हो जायेगा। विश्वामित्रजी प्रभु से कहते हैं- अहल्या धर्म के मार्ग पर चली पर पत्थर बन गयी। वह तुम्हारे पास अयोध्या नहीं जा सकती, क्योंकि पत्थर में चलने की सामर्थ्य नहीं होती। पर राम! तुम इसका धैर्य तो देखो-

गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर।। 1/210


यह कितने समय से सब कुछ सहते हुए पड़ी हुई है कि कभी तो प्रभु राम आयेंगे। इसकी इच्छा है कि तुम अपने चरण-कमल की धूलि इस पर डाल दो। इसलिए तुम अब विलंब मत करो और इस अभिशप्त नारी पर कृपा करो।

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