कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
सात-आठ दिन के सफर के बाद ही वह उज्जैन नगरी में पहुंच गया। वहां के राजा प्रताप सिंह की एक बेटी थी। जिसका नाम था विषयाबाई। राजा ने शहर के बीचोंबीच अपनी बेटी विषयाबाई के लिए एक महल बनवाया था। विषयाबाई उसी महल में रहती थी। वह रोज एक आदमी की बलि मांगती थी।
हजारी प्रसाद जैसे ही उस नगर में दाखिल हुआ तो उसे किसी स्त्री के रुदन की आवाज सुनाई दी। वह उस आवाज को सुनकर उस आवाज की दिशा की तरफ बढ़ चला। कुछ ही देर में वह उस घर के सामने था जहां से वह रोने की आवाज आ रही थी। उस घर में कमरे के नाम पर एक छप्पर बना हुआ था। छप्पर पर कहीं फूस था तो कहीं पर बिना फूस के ही था। आंगन के नाम पर एक चौड़ा सा आंगन था। आंगन के बीच में एक जगह पर एक बुढिया अपने सोलह-सत्रह साल के पोते को नहला रही थी और जोर-जोर से रो रही थी। साथ-साथ कह रही थी - आज आखिरी दिन मैं तुझे नहला रही हूं। आज शाम को ही तू विषयाबाई की भेंट चढ़ जायेगा। वह लड़की बेवा तो मुझे पहले ही कर चुकी थी आज तुम्हारे जाने के बाद मैं निपूती भी हो जाऊंगी।
आपको कोई निपूती नहीं कर सकता है मां। आपके बेटे की जगह आज मैं वहां जाऊंगा। आपका पुत्र आपके पास ही रहेगा। आज उस विषयाबाई के बारे जरा विस्तार से बताएं मां – हजारी बुढ़िया से बोला।
बुढिया कहने लगी -आप कौन हैं बेटा। रुंधे गले से आवाज आई। बेटा तो मेरा ही जायेगा। आप जाएं या ये मेरा बेटा गौतम। तुमने भी तो मुझे मां ही कहा है। अतः तुम भी मेरे बेटे ही हो।
हजारी प्रसाद ने कहा- मां मेरा नाम हजारी प्रसाद है। मैं गौतम का बड़ा भाई हूं। अतः गौतम से पहले मैं वहां जाऊंगा। बड़े का कर्तव्य है कि वह अपने छोटे भाई की रक्षा करे और फिर जिसकी मौत आई है उसे कौन बचा सकता है और जिसकी मौत नहीं उसे कौन मार सकता है। अतः अब आप गौतम को छोडि़ए और मुझे नहलाकर तैयार कीजिए।
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