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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

अब तो बुढिया जोर-जोर से रोने लगी - नहीं बेटा मैं तुझे वहां नहीं भेज सकती।

अच्छा ठीक है मुझे वहां मत भेजना पर मुझे नहला सकती हैं ना आप और कुछ उस विषयाबाई के बारे में भी बतला दें - हजारी प्रसाद ने बुढिया से बड़े प्यार से कहा।

बुढिया बोली- चल आ जा तुझे भी नहला दूं। तू भी तो मेरा ही बेटा है।

बुढिया ने आंसू पोंछे और उसे नहलाने लगी। नहला कर वह हजारी प्रसाद से विषयाबाई के बारे में कहने लगी- यहां के राजा प्रताप सिंह की एक पुत्री थी जिसका नाम मृगनयनी था। बारह-तेरह साल की उम्र में उसके अन्दर एक शैतान आत्मा घुस गई और उस दिन से वह रोज एक नरबलि मांगती है। राजा ने उसके लिए अलग से एक महल बनवा दिया है। वह लड़की वही पर अचेत मुद्रा में पड़ी रहती है। राजा उसके लिए रोज एक नरबलि भेजता है। वह हर आदमी को अपने विष से मारती है। इसलिए उसका नाम विषयाबाई पड़ा है। आज गौतम की बारी है। यह कह कर फिर से बुढिया फफक पड़ी।

आप रोईये मत मां। आपके पुत्र को कुछ नहीं होगा। मैं जाऊंगा, इसकी जगह। भगवान से प्रार्थना कीजिए कि मैं सही सलामत बाहर आऊं। अब संध्या हो गई है अतः मां मुझे चलने की आज्ञा दीजिए।

बुढिया ने रोते-रोते उसे विदा किया।

आप मत रोईये मां। कल सुबह मैं जिंदा वापिस लौटूंगा।

जब हजारी प्रसाद विषयाबाई के महल की तरफ चला तो वहां का राजा प्रताप सिंह उसे रास्ते में मिला। प्रताप सिंह ने पूछा कि - आप कौन हैं ? आज तो बुढिया के बेटे गौतम की बारी थी। तुम तो गौतम नहीं लगते। बताओ अजनबी तुम कौन हो।

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