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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

कुछ दिन वह बुढिया के पास रहा। एक दिन राजा ने राजकुमारी से विवाह का संदेशा बुढिया के पास भेजा तो बुढिया बड़ी खुश हुई। उसने हजारी प्रसाद का विवाह राजकुमारी से कर दिया। विवाह के बाद आधे राज्य का राजा गौतम को बना दिया और स्वयं मृगनयनी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

एक दिन मृगनयनी ने हजारी से कहा- क्या मेरी ससुराल भी है।

इतना सुनकर हजारी प्रसाद ने कहा- हां है ना, तेरी ससुराल। तेरी सास है ससुर है अर्थात मेरे मां-बाप हैं। सब हैं घर में।

तो फिर मैं अपनी ससुराल जाना चाहती हूं। मुझे अपनी ससुराल जाना है। कृपया मुझे मेरी ससुराल ले चलिए। उसकी जिद्द पर हजारी प्रसाद ने कहा- आज ठहर जाने दो हम कल सुबह ही अपने गांव जायेंगे। मैं आज ही तुम्हारे पिता से बातें कर लूंगा और तुम चलने की तैयारी करो।

हजारी प्रसाद राजा के पास गया और बोला- महाराज मैं और मृगमयनी कल सुबह ही मेरे गांव अर्थात अपने माता-पिता के पास रवाना होंगे।

राजा ने कहा - बड़ी अच्छी बात है। हम तुम्हारे जाने का इंतजाम करा देंगे मगर हमारी तो यही इच्छा थी कि अभी और कुछ दिन हमारे पास रुक जाते।

दूसरे दिन सुबह ही हजारी प्रसाद के महल के आगे दो रथ खड़े थे और विदा करने लिए स्वयं राजा प्रताप सिंह और उसकी रानी मायावती आई थी। राजा ने हजारी प्रसाद से कहा- अब तुम अपने गांव जा रहे हो मैं तो चाहता था कि कुछ दिन और ठहर जाते, मगर अब जा ही रहे हो तो हमारी तरफ से ये धन से भरे हुए दो रथ आप स्वीकार करें और हमारी तरफ से अपने माता-पिता को हमारा नमस्कार कहना।

फिर मायावती बोली- बेटा हमारी ये फूल सी बच्ची अब आपको सौंप रहे हैं। हमने इसे जी भरकर देखा तक भी नहीं था। कि अब आप इसे लेकर जा रहे हैं। हमारी आपसे प्रार्थना है कि यदि इससे कोई भूल भी हो जाए तो माफ कर देना।

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