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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

अब उनसे विदा ले मृगनयनी और हजारी प्रसाद दोनों रथ में बैठ लिए। हजारी प्रसाद ने रथ चलाने वाले को आदेश दिया कि पहले हम चन्दनपुर चलेंगे। यह सुनकर मृगनयनी बोली- हमारा छोटा रास्ता तो इधर से है फिर चन्दनपुर क्यों?

हजारी प्रसाद बोला- वो मेरी पहली ससुराल है। वहां जाना बहुत जरूरी है। अब दोनों चन्दनपुर पहुंच गये। उन्होंने गांव से बाहर ही रुकने का प्रबंध किया। अब वह मृगमयनी से बोला- मृगनयनी आओ, हम मेरी पहली पत्नी के मायके चलते हैं।

दोनों सेठ धर्मचन्द के घर पहुंच गये। सेठ धर्मचन्द ने हजारी प्रसाद को देखते ही पहचान लिया और कहा- आपको तो मैंने पहचान लिया पर आपके साथ ये कौन हैं?

जी ये मेरी धर्मपत्नी है मृगनयनी है।

आपने दूसरी शादी कर ली बेटा और हमें बताया तक नहीं। क्या हमारी बेटी सुन्दर नहीं अथवा कोई और कारण हो सो कहो।

तब हजारी प्रसाद ने सम्पूर्ण कहानी बतला दी। धर्मचन्द को एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ। मगर जब उसने अपनी बेटी लाजवन्ती से पूछा तो उसने भी सारी बात स्वीकार कर ली। अब सच्चाई सामने आ गई। धर्मचन्द ने लाजवन्ती को डांटा, फटकारा। लाजवन्ती ने हजारी प्रसाद से कहा- स्वामी मैं तो तुम्हारे चरणों के धूल के बराबर भी नहीं हूं और ना ही मैं आपके लायक हूं। मैंने आपको मरवाने की कोशिश की है। अपने यार को बचाया मगर उसने भी मुझे धोखा दे दिया। वह मुझे गर्भवती करके भाग गया। मैं सोच रही थी कि किसी तरह से आपसे मुलाकात हो और आपसे माफी मांग सकूं। मैंने ऐसी गलती की है जो माफी के लायक तो नहीं है मगर आप मुझे माफ कर दें तो मैं आराम से मर सकूंगी।

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