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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


एक चमार बोला–मालिक, आपको अख़्तियार है, मार डालिए। मुदा पेट बाँधकर काम नहीं होता।

चौधरी ने हाथ बाँधकर कहा–हुज़ूर, घास तो रात ही को पहुँचा दी गई थी, मैं आप जाकर रखवा आया था। हाँ, इस बेला अभी नहीं पहुँची। आधे आदमी तो माँदे पड़े हुए हैं, क्या करूँ?

मुंशी–बदमाश!  झूठ बोलता है, सुअर, डैम फूल, ब्लॉडी, रास्केल, शैतान का बच्चा, अभी पोलो खेल होगा, घोड़े बिना खाए कैसे दौड़ेंगे?

एक युवक ने कहा–हम लोग तो बिना खाए आठ दिन से घास दे रहे हैं, घोड़े क्या बिना खाए एक दिन भी न दौड़ेंगे? क्या हम घोड़े से भी गए-गुज़रे हैं?

चौधरी डण्डा लेकर युवक को मारने दौड़ा; पर उसके पहले ही ठाकुर साहब ने झपटकर उसे चार-पाँच हंटर सड़ाप-सड़ाप लगा दिये। नंगी देह, चमड़ा फट गया, खून निकल आया।

चौधरी ने युवक और ठाकुर साहब के बीच खड़े होकर कहा–हुज़ूर, क्या मार ही डालेंगे? लड़का है, कुछ अनुचित मुँह से निकल जाये तो क्षमा करनी चाहिए। राजा को दयावान होना चाहिए।

ठाकुर साहब आपे से बाहर हो रहे थे। एक चमार का यह हौसला कि उनके सामने मुँह खोल सके। वही हंटर तानकर चौधरी को ज़माया। बूढ़ा आदमी, उस पर कई दिन का भूखा, खड़ा भी मुश्किल से हो सकता था। हंटर पड़ते ही ज़मीन पर गिर पड़ा। बाड़े में हलचल पड़ गई। हज़ारों आदमी ज़मा हो गए। कितने ही चमारों ने मारे डर के खुर्पी और रस्सी उठा ली थी और घास छीलने जा रहे थे। चौधरी पर हंटर पड़ते देखा, तो रस्सी, खुर्पी फेंक दी और आकर चौधरी को उठाने लगे।

ठाकुर साहब ने तड़पकर कहा–तुम सब अभी एक घंटे में घास लाओ, नहीं तो एक-एक की हड्डी तोड़ दी जायेगी।

एक चमार बोला–हम यहाँ काम करने आये हैं, जान देने नहीं आये हैं। एक तो भूखों मरें, दूसरे लात खाएँ। हमारा जन्म इसीलिए थोड़े ही हुआ है? जिससे चाहें काम करवाइए; हम घर जाते हैं।

ठाकुर साहब फिर हंटर फटकारकर बोले–कहाँ भागकर जाओगे? गाँव में घुसने भी न पाओगे। क्या सरकारी काम को हँसी-खेल समझ लिया है?

चमार–सरकार, अपना गाँव ले ले, हम छोड़कर चले जाएँगे।

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