उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
ठाकुर–खेत छीन लिए जाएँगे। घर गिरा दिये जाएँगे। इस फेर में मत रहना।
चमार–आपको अख़्तियार है, जो चाहें करें। हमें अब इस राज्य में नहीं रहना है, कुछ हाथ-पाँव थोड़े ही कटाए बैठे हैं। अगर कहीं ठिकाना न लगेगा, तो मिरिच डमरा तो हैं ही।
मुंशी–जिसने बाड़े के बाहर कदम रखा, उसकी शामत आयी। तोप पर उड़ा दूँगा।
लेकिन चमारों के सिर पर भूत सवार था। बूढ़े चौधरी को उठाकर सब-के-सब एक गोल में बाड़े के द्वार की ओर चले। सिपाहियों की क़वायद हो रही थी। ठाकुर साहब ने ख़बर भेजी और बात-की-बात में उन सबने आकर बाड़े का द्वार रोक लिया। सभी कैम्पों में खलबली मच गई। तरह-तरह की अफ़वाहें उड़ने लगीं। किसी ने कहा–चमारों ने दीवान साहब को मार डाला। किसी ने उड़ाया–सिपाहियों ने गोली चला दी और पचास चमार जान से मारे गए। चारों तरफ़ से दौड़-दौड़कर लोग तमाशा देखने आने लगे। बाड़े का द्वार भेड़ों के बाड़े का द्वार बना हुआ था। भीतर भेड़ें थीं, घबराई हुई, बाहर कुत्ते थे, झल्लाए हुए। भेड़ लड़ना नहीं जानतीं; पर प्राण भय से भागना जानती हैं। वे उसी रास्ते से निकलेंगी, जो आँखों के सामने है। उस पर कुत्ते हों या शेर घबराहट में भेड़ों को कुछ नहीं सूझता। सिपाहियों को अपनी वीरता दिखाने का ऐसा अवसर क्यों कभी मिला था। निहत्थों पर हथियार चलाने के आसान और क्या है? सभी संगीन चढ़ाए तैयार थे कि हुक्म मिले और अपने निशानेबाज़ी के जौहर दिखाएँ।
राजा साहब अपने खेमे में तिलक के भड़कीले-सजीले वस्त्र धारण कर रहे थे। एक आदमी उनकी पग सँवार रहा था। इन वस्त्रों में उनकी प्रतिभा भी चमक उठी थी। वस्त्रों में तेज बढ़ानेवाली इतनी शक्ति है, इसकी उन्हें कभी कल्पना भी न थी। यह ख़बर सुनी, तो तिलमिला गए। वह अपनी समझ में प्रजा के सच्चे भक्त थे, उन पर कोई अत्याचार न होने देते थे, उनको लूटना नहीं, उनका पालन करना चाहते थे। जब वह प्रजा पर इतना प्राण देते थे, तो क्या प्रजा का धर्म न था कि वह भी उन पर प्राण देती; और फिर शुभ अवसर पर! जो लोग इतने कृतघ्न हैं, उन पर किसी तरह की रियायत करना व्यर्थ है। दयालुता दो प्रकार की होती है–एक में नम्रता होती है, दूसरी में आत्म-प्रशंसा। राजा साहब की दयालुता इसी प्रकार की थी। उन्हें यश की बड़ी इच्छा थी; पर यहाँ इस शुभ अवसर पर इतने राजाओं-रईसों के सामने ये दुष्ट लोग उनका अपमान करने पर तुले हुए थे। यह उन पाजियों की घोर नीचता थी और इसका जवाब इसके सिवा और कुछ नहीं था कि उन्हें खूब कुचल दिया जाता। सच है, सीधे का मुँह कुत्ता चाटता है। मैं जितना ही इन लोगों को संतुष्ट करना चाहता हूँ, उतने ही ये लोग शेर हो जाते हैं। चलकर अभी उन्हें मज़ा चखाता हूँ। क्रोध से बावले होकर वह अपनी बन्दूक़ लिए खेमे से निकल आये और कई आदमियों के साथ बाड़े के द्वार पर जा पहुँचे।
चौधरी इतनी देर में झाड़-पोंछकर उठ बैठा था। राजा को देखते ही रोकर बोला–दुहाई है महाराजा की! सरकार बड़ा अन्धेर हो रहा है। ग़रीब लोग मारे जाते हैं।
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