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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


43. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए


फिर चुप्पी को तोड़ते हुए
रूंधे मुँह से पिता बोले
हमारी जिन्दगी पार हो चली
तुम सुखी रहो, हम चाहते

यह सुन आँखों से टप-टप
गिरने लगा पानी झर-झर

कैसे पोछूं मैं अपने आँसूं।
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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